टूटे सब आस
अमराइयाँ खिली हैं
महुवा महका-महका रे
मोरे जिया में आग लगाये
पिया-पिया बोले पपीहा रे ,
कितने मौसम आये गए
घर अजहुँ ना साजन आया
अँखियाँ थक गयीं रस्ता तकते
चिठिया ना सन्देशा आया ,
सखियाँ मुझसे चुहल करें
बता पिया का हाल रे
मोरे जिया में आग लगाये
पिया-पिया बोले पपीहा रे ,
कोयल कूं-कूं बोले डाली
खेतवन झूमे गेहूं बाली
खिली-खिली पीली सरसों है
तितली कितनी मतवाली ,
सावन के सब झूले झूलें
मेंहदी रचा सब हाथ रे
मोरे जिया में आग लगाये
पिया-पिया बोले पपीहा रे ,
घर आँगन सब सूना-सूना
काँटों भरी ये सेज लगे
पी सौतन संग रास रचाये
तन विरहा की आग जले ,
चुनरी मोरी धूमिल हो गयी
टूटा जोगन का सब आस रे
मोरे जिया में आग लगाये
पिया-पिया बोले पपीहा रे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें