चाँद की करामात
मुखड़ा दिखावे चाँद बदरा की ओट से
लुका-छिपी करे ओढ़ि घटा की चुनरिया ।
कांहें तड़पावे,तरसावे मोहें मुस्काई के
हे रही-रही टीस उठे जाईं जब सेजरिया ।
हमका रिझाई करे चन्द्रिका से बतिया
अँखिया मिलावे कब्बों फेरि ले नज़रिया ।
देखि ई निराला प्रेम करवट कटे रतिया
नयनवां से लोर ढूरे जईसे बरसे बदरिया ।
बलमा अनाड़ी नाहीं बूझे मोरे मन की
निंदिया बेसुध सोवे मुँहें तानिके चदरिया ।
केहू तरे सुते जब जाईं दियरा बुझाई के
करें रास चंदा,चकोर बैठि हमरे अटरिया ।
देखि जर जाय देह बेख़बर निर्दइया के
झरोखवा के झिरी जब झाँके अँजोरिया ।
हियरा के गूंढ़ बात कहीं हम केकरा से
अस केहु होत लेत तनि हमरो खबरिया ।
होत भिनुसार चलि गईले पिउ परदेशे
सुसुकि रोईलां मुँह दाब अँचरा संवरिया ।
शैल सिंह
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