रूत सावन है अलमस्त सुहावन
भरे उमंग,तरंग लगे उर वृन्दावन
रैना अंधेरी जले जुग-जुग जुगनूं
भरे प्रकृति में है ख़ुश्बू मनभावन ।
नभ छाई घटा घनघोर बलमु जी
तड़क-तड़क तड़ गरजे बिजुरी
मग आँखें बिछा तकूं राह तेरी
घर आओ पिया,संग खेलूं कजरी ।
ले मदमस्त सवनवां जब अंगड़ाई
उठे सरर-सरर-सर्र मन में हिलोरा
महके तेरे गंध सी मह-मह पुरवाई ।
ओढ़ हरी चूनर लहकें वन-उपवन
पी संग चंचल शोख़ हुईं सखियां
बूंदों की छम-छम से गूंजे सरगम
टह-टह सहन में छिटकी चंदनियां ।
तुम बिना प्रीत भरा अंजन,कजरा
कौन देखे कंगन,केश सजा गजरा
बजे छन-छन पांव पाजेब निगोड़ी
लगे बिरथ सिंगार रची द्वार रंगोली ।
तन सुलगाती विराग में साजन की
बरसे रिम-झिम कारा बावरा बदरा
समेटती फुहरा,मुदित पसरा अंचरा ।
सुधि में तपती देख आ छूके मस्तक
लगे जीवन पहाड़ रैना दिवा सरीखी
मारे डंक सेज लगे घर सूना अबतक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
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