गांव-शहर पर भोजपुरी में मेरी एक रचना
हमरे गउंवां में जइसन लगे पिपरा के छांव हो
कत्तों नाहीं देखलीं वइसन शहर बीचे ठांव हो ,
कत्तों नाहीं देखलीं वइसन शहर बीचे ठांव हो ,
सटले-सटल घर तब्बों काटे सुनसान उदासी
हनल केवाड़ी जंगला सब कर रहे दिनों राति
केतनों झंकलीं अगल-बगल केहू ना देखाला
जइसे गंउंवां में हमरे पग-पग लोगवा भेंटाला
तरस जाला जियरा केहु ना मिले बतियावे के
चला देख गउंवां हमरे मन करि नाहिं आवे के ।
हनल केवाड़ी जंगला सब कर रहे दिनों राति
केतनों झंकलीं अगल-बगल केहू ना देखाला
जइसे गंउंवां में हमरे पग-पग लोगवा भेंटाला
तरस जाला जियरा केहु ना मिले बतियावे के
चला देख गउंवां हमरे मन करि नाहिं आवे के ।
कब भिनुसार होला कब होले इहवां सांझ हो
कब चिरई चह-चहके कब देला मुर्गा बांग हो
कब चिरई चह-चहके कब देला मुर्गा बांग हो
ना कवनों मुड़ेरवा सुनलीं कांव-कांव काग के
ना त केहु हाथे देखलीं कटोरवा दूध भात के
ना केहु से मेल-मिलापा लेन-देन व्यवहार हो
चला देखा गंउंवां विहँसे लगे रोज त्यौहार हो ।
ना त केहु हाथे देखलीं कटोरवा दूध भात के
ना केहु से मेल-मिलापा लेन-देन व्यवहार हो
चला देखा गंउंवां विहँसे लगे रोज त्यौहार हो ।
कहे के शहर बड़ा कैद दुई कोठरी में जिनगी
होला गदबेला कब चकोर-चन्दा में दिल्लगी
होला गदबेला कब चकोर-चन्दा में दिल्लगी
न अंगना ओसारी कुछ सुखाईं मन बहलाईं
ना बित्ता भर दुवार कत्तों झांकि-ताकि आईं
आसमान छूवे कई-कई तल्ला के मकान हो
लागे नाहिं रहेला एहमे केहू एको इन्सान हो ।
लागे नाहिं रहेला एहमे केहू एको इन्सान हो ।
बहुते अमीर इहां फटल परिधान तन धार के
अंईंठे शहर के लोग चले आधा तन उघार के
बहुत गरीब गांव तब्बों सबक तन ढंकल बा
आधे पेट खाके देखा हंसत सबक सकल बा
जे गंउंवां के गंवार कहे मन करे गरियाईं हो
धई के उमेठीं कान दरश गंउंवां के कराईं हो ।
शैल सिंह
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