'' पिया ना जाने हूक हिया की
लाज की बात कहूँ कईसे'
कित मास आस में बीत गए
सावन की दाह सहूँ कईसे । ''
रिम-झिम बरसे बदरा, भींजे देह भींजे अंचरा
भींजे नाहीं मन सराबोर झमाझम बरसो रे बदराभींजे तन-मन पोरे-पोर झमाझम बरसो रे बदरा ।
सुनुगि-सुनुगि जरे हियवा भितरिया
अगिया बुझा दे आके हमरी सेजरिया
आँखि से बहेला कजरा ,ढुरुकी गिरेला अंचरा
बुनिया गिरादे घनघोर ,झमाझम बरसो रे बदरा
भींजे तन-मन पोरे-पोर, झमाझम बरसो रे बदरा ।
सईयां निर्मोहिया नाहीं लेला मोरी खबरिया
छछनि-विछनि घुरिना पिछवरवा दुवारिया
सवतियन के सन्घें, लहरा,लूटता बेदर्दी बहरा
देई दे सनेसवा झकझोर,झमाझम बरसो रे बदरा
भींजे तन-मन पोरे-पोर झमाझम बरसो रे बदरा ।
करिया अछर ना जानीं लिखीं कईसे पतिया
करके करेजवा फाटे कर-कर अस छतिया
पिऊ-पिऊ बोले पपिहरा,चनवा अटरिया हमरा
करे मोसे जोरा-जोरी-जोर,झमाझम बरसो रे बदरा
भींजे तन-मन पोरे-पोर झमाझम बरसो रे बदरा ।
शैल सिंह
हीं
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