शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

मत पेट पे लात चला देना


मेघ बरसना चाहे जितना तुम मेरी मड़ई का ध्यान रहे
पछुवा बहना चाहे रे जितना मेरी ढिबरी का ध्यान रहे,

हम अपना नीड़  बचाने में दिन  रात ढिहनाते रहते हैं
कड़के कभी जो दामिनी प्राण पात पर अटके रहते हैं,

किसी-किसी के जीवन में  सुख ही सुख भर देते मेघ
और किसी के कोढ़ में खाज आफ़त सी भर देते मेघ,

कभी बरसाते ओला खूब तो कभी तपाते तुम निर्मम
कभी सूर्य के रथ सवार हो आग उगल कर देते बेदम,

उपले,गोंइठा,लौना-लकड़ी कहीं मत ग्रास बना लेना
दोनों जून जले घर चूल्हा मत पेट पे लात चला देना,

राजे-रजवाड़ों के घर जाकर महल अटारी पर बरसो
हो तुम उनके लिए सुहावना मौसम दरबारी कर हर्षो,

खलिहान,खेत तो बहा ले गये लटका है सूली पे प्राण
आपदा गरीबों को देकर कुछ तो रखो व्यथा का मान ,

फसल हमारे सपने थे वही जीवन के ख़जानों के सार
सब चौपट कर दे रहे विषाद नहीं करो और अत्याचार,

कहीं सूखे से लोग बेहाल कहीं बरसते तुम मूसलाधार
कितने मन के मनबढ़ हो कहर बरपाते तुम अपरम्पार ।

                                                  शैल सिंह






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