शुक्रवार, 3 जून 2022

टूटे सब आस

 टूटे सब आस 

अमराइयाँ खिली हैं 
महुवा महका-महका रे 
मोरे जिया में आग लगाये 
पिया-पिया बोले पपीहा रे ,

कितने मौसम आये गए 
घर अजहुँ ना साजन आया 
अँखियाँ थक गयीं रस्ता तकते 
चिठिया ना सन्देशा आया ,

सखियाँ मुझसे चुहल करें 
बता पिया का हाल रे 
मोरे जिया में आग लगाये 
पिया-पिया बोले पपीहा रे ,

कोयल कूं-कूं बोले डाली 
खेतवन झूमे गेहूं बाली 
खिली-खिली पीली सरसों है 
तितली कितनी मतवाली ,

सावन के सब झूले झूलें 
मेंहदी रचा सब हाथ रे 
मोरे जिया में आग लगाये 
पिया-पिया बोले पपीहा रे ,

घर आँगन सब सूना-सूना 
काँटों भरी ये सेज लगे 
पी सौतन संग रास रचाये 
तन विरहा की आग जले ,

चुनरी मोरी धूमिल हो गयी 
टूटा जोगन का सब आस रे 
मोरे जिया में आग लगाये 
पिया-पिया बोले पपीहा रे। 

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