सोमवार, 30 मई 2022

चाँद की करामात

             चाँद की करामात 


मुखड़ा दिखावे चाँद बदरा की ओट से
लुका-छिपी करे ओढ़ि घटा की चुनरिया ।

कांहें तड़पावे,तरसावे मोहें मुस्काई के
हे रही-रही टीस उठे जाईं जब सेजरिया । 

हमका रिझाई करे चन्द्रिका से बतिया
अँखिया मिलावे कब्बों फेरि ले नज़रिया ।

देखि ई निराला प्रेम करवट कटे रतिया
नयनवां से लोर ढूरे जईसे बरसे बदरिया ।

बलमा अनाड़ी नाहीं  बूझे मोरे मन की
निंदिया बेसुध सोवे मुँहें तानिके चदरिया ।

केहू तरे सुते जब जाईं दियरा बुझाई के 
करें रास चंदा,चकोर बैठि हमरे अटरिया । 

देखि जर जाय देह बेख़बर निर्दइया के 
झरोखवा के झिरी जब झाँके अँजोरिया । 

हियरा के गूंढ़ बात कहीं हम केकरा से
अस केहु होत लेत तनि हमरो खबरिया ।

होत भिनुसार चलि गईले पिउ परदेशे
सुसुकि रोईलां मुँह दाब अँचरा संवरिया ।

                     शैल सिंह 



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