बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

मैया भजन

मैया भजन 


जय-जय कारा करते चलो बटोही
राह कठिन आसान होगी
बाट जोहती भक्तों की
अरे मैया परेशान होगी
जय-जय  …।

माँ तो आखिर माँ है
ममता की मूरत न्यारी
सुन्दर रूप सलोना माँ का
लगती कितनी प्यारी
माँ का सुमिरन करता चल
दूर हर बाधा व्यवधान होगी
जय-जय  …।

भष्म करेगी हर दुःख संकट
नैनों की जलती ज्वाला से
हर कर कठिनाई भर देगी
झोली खुशियों की माला से
निरंकार है ज्योति नयन की
पूरी जीवन की अरमान होगी
जय-जय  …।

ऊँचे पर्वत माँ का बसेरा
राह विकट बड़ी भारी है
हमसाया बन साथ चले
बस लेती थाह तुम्हारी है
मुश्किलों की मत परवा कर
सब दरशन से समाधान होगी
जय-जय  …।

रोते कलपते जाते हैं सब
देख लो मैया के दरबार
हँसते गाते आते हैं सब
साधें करके अपनी साकार
आसें अधूरी मन की पूरी
मुख मण्डल मुस्कान होगी
जय-जय  …।

   शैल सिंह

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

मीरा भजन

  कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष,

         मेरी रचना 

       ''मीरा भजन'' 

मीरा हो गयी री बदनाम अकारण तेरे
मुरली वाले घनश्याम कारण तेरे
अकारण  तेरे  श्याम   कारण तेरे
मीरा हो गयी री बदनाम अकारण तेरे ,

मुरली धुन में राधा-राधा
मीरा भजन में श्याम ,
नन्दलाल की माला जपना
बस मीरा का काम ,
विष का प्याला पी गई हँसते
छवि देखि अभिराम ,

मीरा हो गयी री बदनाम अकारण तेरे
मुरली वाले घनश्याम कारण तेरे
अकारण  तेरे  श्याम   कारण तेरे
मीरा हो गयी री बदनाम अकारण तेरे।

मोहनी मूरत हाथों में
हरि का होंठों पर नाम ,
आठों पहर बसते हैं जिसके
नयनों में घनश्याम ,
राजपाट घर-बार छोड़कर
धर ली मथुरा धाम ,

मीरा हो गयी री बदनाम अकारण तेरे
मुरली वाले घनश्याम कारण तेरे
अकारण  तेरे  श्याम   कारण तेरे
मीरा हो गयी री बदनाम अकारण तेरे।

श्याम दरश की बावरी अँखिया
महलों का सुख छोड़ दिया ,
हरे  मुरारी   बांके  विहारी
को कहती मेरा पिया-पिया ,
जोगन बनकर दासी मीरा
अमर कर गई नाम ,

मीरा हो गयी री बदनाम अकारण तेरे
मुरली वाले घनश्याम कारण तेरे
अकारण  तेरे  श्याम   कारण तेरे
मीरा हो गयी री बदनाम अकारण तेरे।


                                                               शैल सिंह

सोमवार, 28 सितंबर 2015

खांटी भोजपुरी में एक जुमला गीत

करा जनि गुमान एतना
सोना ,अन ,धन पाई के
केतनी   लरकल   रहेले
डरिया लदरल मुड़ियाई के ,

भरल  गगरिया   कबहूँ
ना  छलके   इतराई  के
अधजल गगरिया छलके
छल-छल  इठिलाई  के
वोहि जल गिरेला मद में
गुमानी अन्हरा बिछिलाई के
केतनी लरकल  ....| करा जनि  ....|

भरल    पत्तलवा    कबहूँ
ना   उड़ेला  उधियाई  के
खाली  पत्तरवा  सर-सर
उड़ेला    सुरियाई    के
गिरि पड़ि सरेला कवनों
गड़हा     मुरुझाई     के
केतनी लरकल  …। करा जनि  ....|

देखि-देखि हरियर बगिया
चल ताड़ू लुग्गा  झहराई के
ई ना दूसरा के  कामे आई
हम त कहिला फरियाई के
नै  के तनी  चला डगरिया
मति उतान सीना तानि के
केतनी लरकल  ....| करा जनि  ….|

नै --झुक कर
                     शैल सिंह 

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

किस घर आई डोली


फँसी  मुदईयों  बीच  अकेली   हूँ  मैं   क्या   करूँ  राम
कोई   सखी  ना  मेरी  सहेली   है  मैं   क्या  करूँ  राम
उलझी  सुलझे  ना मेरी  पहेली है  मैं   क्या  करूँ  राम,

अदहन  जइसे   खदके  भीतर  सास  की  तीखी  बोली
पेट   मरोड़े   ननद   का  ताना  जइसे  गन  की   गोली
घिरे  धरम  संकट   में  सईयां  कभी  जुबां  ना   खोली ,
फँसी  मुदईयों  बीच  अकेली   हूँ  मैं   क्या   करूँ  राम
कोई   सखी  ना  मेरी  सहेली   है  मैं   क्या  करूँ  राम
उलझी  सुलझे  ना मेरी  पहेली है  मैं   क्या  करूँ  राम,

ससुर  जी   मेहरा  बनकर  बइठे  दुवरा  डाल  खटोली
देवर लुहेड़ा लेवे लिहाड़ी टिप-टिप बोले बोली टीबोली
मौन  साध जुती रहूँ बैल सी जाने किस घर आई डोली ,
फँसी  मुदईयों  बीच  अकेली   हूँ  मैं   क्या   करूँ  राम
कोई   सखी  ना  मेरी  सहेली   है  मैं   क्या  करूँ  राम
उलझी  सुलझे  ना मेरी  पहेली है  मैं   क्या  करूँ  राम,


छूटा गाँव जवारा नईहर छूटी प्रिय सखियन  की टोली
कजरी,झूला,मेला,छूटा सैर सपाटा छूटी गांव की होली
छूटे दीवाली,दीये पटाखे घर की छूटी रंग बिरंग रंगोली ,
फँसी  मुदईयों  बीच  अकेली   हूँ  मैं   क्या   करूँ  राम
कोई   सखी  ना  मेरी  सहेली   है  मैं   क्या  करूँ  राम
उलझी  सुलझे  ना मेरी  पहेली है  मैं   क्या  करूँ  राम,

बापू के नेह की घाम थी देखी ममता के छाँह की खोली
भैया के लाड़ की बरखा बहन के आँचल में डांटें रो लीं
आजी-बाबा के संस्कार के आँवा,मैं पकी निगोड़ी भोली ,
फँसी  मुदईयों  बीच  अकेली   हूँ  मैं   क्या   करूँ  राम
कोई   सखी  ना  मेरी  सहेली   है  मैं   क्या  करूँ  राम
उलझी  सुलझे  ना मेरी  पहेली है  मैं   क्या  करूँ  राम,
                                                          शैल सिंह








शनिवार, 19 सितंबर 2015

कृष्ण भजन

                                         '' कृष्ण  भजन '' 


मैया बड़ा करे परेशान तेरो कान्हा रगरी 
पूछ ले देखे है करतूतें सारी गोकुल नगरी 

जब जमुना जल भरने जाऊँ काँख में दाब गगरिया 
बीच राह धरि बँहिया छेड़े नटखट तेरो सँवरिया 
करे डगर बीच रगरा मोसे बहुत करे बरजोरी 
तेरो कान्हा रगरी ,मैया बड़ा। .......| 

बाल-गोपाल संग खान-बेखान की लीला करे सँवरिया 
रंग-बिरंग का भेष बना करे जादू बजा बंसुरिया 
मनिहारी बन ठग लियो मोको दियो नरम कलाई मरोरी 
तेरो कान्हा रगरी ,मैया बड़ा। ....| 

सब गोपियन की चीर चुरा छुप बइठे कदम की डरिया 
जगहंसाई बड़ी होगी मुरारी करें मनुहार गुजरिया 
रार करे ना माने कहना सुने ना कोई चिरौरी 
तेरो कान्हा रगरी , मैया बड़ा। …। 

मटकी फोड़े शिकहर तोड़े खाए माखन मलैया 
भरि-भरि मुख लिपटायो माखन फिर भी देवे दुहईया 
तेरो चितचोर बड़ा उत्पाती करे है घर-घर चोरी 
तेरो कान्हा रगरी ,मैया बड़ा। …। 

                                  शैल सिंह 

शनिवार, 5 सितंबर 2015

''कृष्ण जन्माष्टमी पर मेरे द्वारा रचित कृष्ण भजन''

 ''कृष्ण जन्माष्टमी पर मेरे द्वारा रचित कृष्ण भजन''

         
नन्द के दुलारे कबसे 
खड़ी हूँ तिहारे दर पे ,
दर्शन को प्यासी अँखिया 
तेरी मैं पुजारन रसिया--२ 

मीरा की भक्ति भर दो
राधा की प्रेम पूजा ,
तुझमें रमा दूँ जीवन                                                      भर दो ऐसा भाव भींगा , 
तम् सा अँधेरा मन में 
ज्ञान का सवेरा भर दो ,
धनवान तुम तो लखिया 
दर की मैं भिखारन रसिया --२


नन्द के दुलारे कबसे
खड़ी हूँ तिहारे पे ,
दर्शन को प्यासी अँखिया
तेरी मैं पुजारन रसिया--२

रास के रचईया स्वामी 
तुम  अन्तर्यामी ,
भटकी हूँ पथ से अपने
मैं हूँ खल कामी ,
मोह ,दंभ ,लोभ मिटा दो
करुणा ,अनुराग जगा दो ,
पालनहार तुम तो लखिया
दर की मैं भिखारन रसिया --२
                                                         
नन्द के दुलारे कबसे
खड़ी हूँ तिहारे पे ,
दर्शन को प्यासी अँखिया
तेरी मैं पुजारन रसिया--२
                                          शैल सिंह






रविवार, 9 अगस्त 2015

सावन आईल

     '' सावन आईल '

सावन आईल आजा साजन
बूंदिया भिजावे बरसात की
झीनी-झीनी झिंसिया के
नीमन लागे फुहरा
देहिया जरावे बरसात की ,
सावन आईल  …।

मनवा उछाह भरे कऊँधे बिजुरिया
देखि घनघोर घटा उठेला लहरिया
मारेला झकोरा पूरवा                                                      
उडा के मोरा अंचरा
आग भड़कावे मोरे प्यास की  ,
सावन आईल  ....|

जोगन बनावे जोगी पपीहा की बोलिया
कुहुके करेजा बागां बोले जब कोइलिया
मनवा के अंगना उतरे
चाँद सी सुरतिया
सेज धधकावे आधी रात की ,
सावन आईल  …।

सोनवा मढ़इबों चोंच तोर कारे कगवा
दूध भात देबों कागा सोने के कटोरवा
तबहूँ ना उड़ि बईठे
कगवा मुड़ेरवा
मरम ना जाने दिल के बात की ,
सावन आईल…।

सँझिया-विहाने राह ताके बऊरहिया
कवना कसूर तजि दिये निरमोहिया
जेठवा,आषाढ़ जईसे
बीते ना सवनवां
पिया बतिया ना बुझे ऐहवात की ,
सावन आईल  ....।

ऐहवात---सुहागन
                                  शैल सिंह



























गुरुवार, 16 जुलाई 2015

'' कथा एक विरहणी की ''


यह एक ऐसी लम्बी कविता है जो भोजपुरी भाषा का पुट लिए हुए गांव की एक विरहन के भाव परोसती है ,जिसका पति परदेश में है उसकी बाट जोहती , जिसकी आस में आँख विछाये मन में अनगिनत हिलोरों का सामना करती ,मन में कैसे-कैसे अंदेशे उठते हैं ,उन आशंकाओं का दंश झेलती प्रतीक्षारत आँखों में सपनों की झड़ी लगाती न जाने किन-किन विचारों को जन्म देती है ,उसी का मनोभाव मैंने अपनी इस कविता में पिरोया हैं । यह कविता गांव की पृष्ठभूमि से जुड़ाव महसूस कराएगी । आगे  ……।

                         '' कथा एक विरहणी की ''


मन-मोहक पवन बहे पुरवा 
   मधुमास सजा वन-वन में 
      नगर-डगर सब चहक उठे 
         मह-मह महक भरा नभ में । 

मैं पिया विरह में अकुलाती 
   घबराती मन ही मन में 
       बिलखाती झुलसाती यादें 
          रंग पीला पात धरा तन ने ।

प्रियतम तुम तो भूल गए
    सदा याद तुम्हारी आती रही
        रो ना सकी औ सो ना सकी
           ये रोग सदा तड़पाती रही ।

दिन दहकता रात धधकती
   फिरूँ जोगन बन घर आँगन
      तन राग-विराग गलाती रही
          बेंध गया मन कानन सावन ।

राह देखते थक गयीं अँखियाँ
  जल-जल नेह का बुझा दिया
     मन में दुबिधा समझ न आये
        दिन रात धधकता मेरा हिया

 किस तरह बिताऊं क्षण-पल
     चैन न आवे विकल जिया रे
        फिर चौखट आ गया वसंत
            घर नहीं आये अजहुँ पिया रे ।

सौंह दे अपनी सौ बार कहा
    नयनों से नीर बहा छल-छल
       प्रिये बरबस आँसू नहीं बहाना
          मेरी ना तकना राहें हर पल ।

सावन बीत भले ही जाए
    पर खेलेंगे होली हम संग
       कहा विहँस परदेश में भी
           छाएंगे तेरी ही यादों के रंग ।

आँखों के आँसू पीकर बोले
     पी मुस्कान बिखेरे मुख पर
         हम भी हृदय हीन नहीं जी
            यूँ तड़पाओ नहीं जी भरकर ।

चलो ख़ुशी से विदा करो
   ना छलकाओ नैनों से पानी
       चाकरी खातिर तन विदेश
          मन पास तुम्हारे ही रानी ।

हम भी बोले जाओ पिया
    पर याद मेरी फरियाद रहे
        रब रखे कुशल से तुम्हें वहाँ
            मन में ना कोई अवसाद रहे ।

तक दिवस बिताऊँगी पथ में
   बस इतनी सी अरदास है ये
      यहाँ एक विरहणी है घर में
          तुम्हें हरदम मेरी याद रहे ।

परदेश में जा बिसरा देंगे
    ऐसी घोर विपति बरपा देँगे
       जरा भी यदि अंदेशा होता
          सखी जाने को तरसा देते ।

गुजर-बसर थोड़े में कर लेते
   मद्धिम खाते ग़म कम कर लेते
      प्रिय संग बिताती उमस दुपहरी
          उनके अंक में सर्दी की झुरझुरी ।

जब-जब कोयल कूक लगाये
   वन पपिहा पिऊ-पिऊ पिहके   
      धक् लगे कटारी बिंधे कलेजा
           रह-रह शूल हिया में कसके ।

सब बोली बोल उपहास करें
   बस मन मसोस रह जाऊँ मैं
       अबीर,गुलाल उड़ा रंग कैसे
           फाग बिन सजना के गाऊँ मैं ।

सोने सा गात मलिन हुआ रे
   दिन-प्रतिदिन कुम्हलाय रही
       क्या सोच सताए किस कारन
          पूछें सखियाँ क्यों मुरझाय रही ।

साज सिंगार क्यों छोड़ दिया
   किससे रूठ ये घाव छिपाय रही
       मेरी अल्हड़ सी बिन्दास सखी
           क्यों तूं हल्दी सी पियराय रही ।

तुम मौज़ करो परदेश पिया
    यहाँ तन आग वसन्त लगाये
       मन कैसे धीर धरे साजन जी
           जिसका विदेश कंत बस जाये ।

तुम सौतन के संग विलस रहे
    घुल-घुल कजरा बहता जाये
         मेरी थाती लूट रही कोई हसीना‌ 
            निर्मोही तेरा छल आभास दिलाये ।

जेठ,आषाढ़ मास ठण्डाया
    कोंख धरा का भींगो गया बदरा‍
        तन भींगा सखी मन नहीं भींगा 
             शोख़ फुहरा भींगो गया अंचरा ।

उमड़-घुमड़ घन घहराये
    गरज-तड़क बरसे बदरा
       दादुर,झींगुर वन पपिहा टेरें
            नाचे मयूरा पर फहरा-फहरा ।

मन पांखी कभी उड़े मगन
   कभी कटी पतंग सा गिरे धरा
       कभी दम दमके मुर्झाया तन
            कभी सिंगार चिढ़ावे देह जरा ।

किसके लिए मांग सुहाग भरूँ
    माथे बिंदिया किसलिए सखी
      किसके लिए गजरा केश सजाऊं
          शूरमा अँखिया किसलिए सखी ।

हार,हूमेल शूल लगे कंगन
    होंठलाली आग लगाये सखी
        परदेश बिराजता देखने वाला
            तन कोई साज न भाय सखी ।

जिया तरसे छलिया सावन में
     हर घर पड़े झलुवा आँगन में
         सब मिली गावें कजरी मल्हार
             जानें ना कब है साँझ सकार ।

घर-घर बने किसिम पकवान
   मोंहें रंच न भावे तीज त्यौहार
      गाँव सिवान मची चहल-पहल 
          मैं तेरी बाट निहारूँ बैठ दुवार ।

सुध-बुध ली नहीं तन की
   पी के मन की थाह मिले ना
       बस पीर नेह की अन्तर जाने
            हाय अंसुओं से आग बुझे ना ।

कैसे भूले सजन सनेहिया
   रतनारी अँखियों का कजरा
        प्रीत में पग जो होते निहाल थे
           तक-तक जिस जुड़े का गजरा ।

रच-बस गए परदेश में जा
    कर कैद मोंहें सोने पिंजरा
        कौन कसर मेरी प्रीत रही जो
             उड़ा मोंगरे के वदन से भंवरा ।

नयन नीर में कजरा बह-बह
   अंगिया,अंचरा में दाग लगाए
        तन ऊसर विरहा मन पर
            सखी दुःख का सिंगार सजाये ।

पिया निर्मोही मोह न जाने
   दिन-रात ना सूझे कुछ भी
      उड़ि-उड़ि काग मुंडेरे बइठे
           मैं बस हाल पूँछूँ पिउ की ।

निमिया भई सयानी दुवरा
    चिरई फुदके फहरा फुनगी
        बरखा फुहार लगे अंगार सखि
             लखि राह पिया की देह सुलगी ।

सुनसान दुपहरी लगी तपाने
    वस्ती में सबके बंद किवाड़
       खोल झरोखा झाँकूँ पल-पल
            कभी अगवाड़े,पिछवाड़े ठाढ़ ।

 चैन नहीं क्षण बाहर क्षण भीतर 
    दुःख किसे दिखाऊँ छाती फाड़
         तूं ही बता बिन साजन सावन
              भला कैसे रोकूँ अन्तस की बाढ़ ।

हाय पूस,माघ भी बीत गए
   हूक ना जाने पिया फागुन की
      ग़र वो आ जावें मौसम बदले
         काया खिल निखरे विरहन की ।

सुख चैन सनेही संग गया
     ली ना खोज खबर लिखी पाती
         सुख तो घर में बेशक तमाम
             पर मन चीज नहीं कोई भाती ।

यादों की बाती जला पिया
    करवट फेरूँ काटूँ दिन,रैना
        नींद ना आवे काँटों सी लागे
            सजा फूलों सा नरम बिछौना ।

देह सूख कर भई छुहारा
   सेज विरह से झुलस रही
      नागिन सी डँसती रैन अँधेरी
          हंसी रूठ अधर पे सिसक रही ।

उड़ें तितली सरीखे सखियाँ 
   मैं खूँटे से बंधी गईया भाँति
       सब मेंहदी,महावर रचें फिरें
          मैं पी साँझ सवेरे जोहूँ पाती ।

अँखियाँ सावन,भादों हो गईं
    ढूरे लोर कपोल बहे कजरा
       दिन-दिन चिचुक रही तरुनाई
          ऐना मुँह निहारूँ घबरा-घबरा ।

धीरज ढाढ़स भी हार गए
   जा संदेश पिया को दे कागा
       कैसी सजा दी कर ये छलावा
           सपनों का नगर कहाँ ले भागा ।

हंसी-ख़ुशी दिन कट जाता
   सखी चना चबैना सतुआ से
       वस्त्र फटा पुराना तन ढँक देता 
            व्यंजन बना देती सूखे महुवा से ।

अँगने की तुलसी विरवा पूजूँ
   नित साँझ,सवेरे दीया जला
       दूनों कर जोरि के व्यथा कहूँ
           माँ विपदा हर दो करो भला ।

नवकिरन बिखेर हर लेता 
   सूरज निस दिन गहन अँधेरा
       दिन भर की तपन मिटावे चाँद
           कौन निरखे उचटा मन मेरा ।

कुछ लोग बदा को कोस रहे
    कुछ कहें तकदीर मेरी खोटी
        कुछ करनी फल कहें भोग रही
            मैं मुँह अँचरा ठूँस बिलख रोती ।

हरी-भरी यहाँ गोंद सखिन की
    आँगन किलकारी का खिलौना
        उसे नजर ना लगे किसी की
             देतीं काजल का चाँद दिठौना ।

पास-पड़ोस की सभी लुगाई
   बांझिन कह-कह मारें ताना
       मैं मुँह पर ताला लगा हूँ बैठी
           जल्दी घर पी परदेशी आना ।

                               सर्वाधिकार सुरक्षित 
                                      शैल सिंह
     

         







       
         



         
         


           





 


बुधवार, 8 जुलाई 2015

'' विरह गीत ''( भोजपुरी में मेरे सौजन्य से )

 '' पिया ना जाने हूक हिया की
    लाज की बात कहूँ कईसे'
    कित मास आस में बीत गए
    सावन की दाह सहूँ कईसे । ''  

                       

रिम-झिम बरसे बदरा, भींजे देह भींजे अंचरा
भींजे नाहीं मन सराबोर झमाझम बरसो रे बदरा
भींजे तन-मन पोरे-पोर झमाझम बरसो रे बदरा ।

सुनुगि-सुनुगि जरे हियवा भितरिया
अगिया बुझा दे आके हमरी सेजरिया
आँखि से बहेला कजरा ,ढुरुकी गिरेला अंचरा
बुनिया गिरादे घनघोर ,झमाझम बरसो रे बदरा
भींजे तन-मन पोरे-पोर, झमाझम बरसो रे बदरा ।

सईयां निर्मोहिया नाहीं लेला मोरी खबरिया
छछनि-विछनि घुरिना पिछवरवा दुवारिया
सवतियन के सन्घें, लहरा,लूटता बेदर्दी बहरा
देई दे सनेसवा झकझोर,झमाझम बरसो रे बदरा
भींजे तन-मन पोरे-पोर झमाझम बरसो रे बदरा ।

करिया अछर ना जानीं लिखीं कईसे पतिया
करके करेजवा फाटे कर-कर अस छतिया
पिऊ-पिऊ बोले पपिहरा,चनवा अटरिया हमरा
करे मोसे जोरा-जोरी-जोर,झमाझम बरसो रे बदरा
भींजे तन-मन पोरे-पोर झमाझम बरसो रे बदरा ।

                                                    शैल सिंह





हीं 

शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

पपिहा पिउ-पिउ बोलेला अटारी मा 

पिया बिन झन-झन झनके अंगनवां 
सून लागे मोरा भवनवां ,
रहिया ताके बेकल नयनवां
निर्मोही भयो सजनवां ,
पपिहा पिउ-पिउ बोलेला अटारी मा
हिया में लगे कटारी ना --२ ,
             
बित गये कित दिवस महिनवा
बिता जाये मास सवनवा ,
कब मोरे अइहें बारे बलमवां
पुजिहें मन के आस सजनवा ,
पपिहा पिउ-पिउ बोलेला अटारी मा
हिया में लगे कटारी ना --२ ,
पिया…।

मोरे पिया गए परदेश
जाके दे दे कोई संदेश ,
मैं तो हो गई रे जोगनियाँ
विरथा जाये भरी जवनियाँ ,
बाली उमर में हुआ गवनवां
बुझे ना बैरी सजनवां ,
सखी सहेली ,छूटा सिवनवां
नैहर हुआ सपनवां ,
पपिहा पिउ-पिउ बोलेला अटारी मा
हिया में लगे कटारी ना --२ ,
पिया…।

झंखे री मोरी सूनी सेजरिया
मैं तो हो गयी री बावरिया ,
कैसे काटूँ विरह की रतिया
किससे कहूँ जिया की बतिया ,
सासू ननद कै साले मेहनवां
गोदिया सूनी बिनु ललनवां ,
हंसी ठिठोली भावे ना मनवां
देवरा भयो सयनवा,
पपिहा पिउ-पुउ बोलेला अटारी मा
हिया में लगे कटारी ना --२ ,
पिया…।

                                         शैल सिंह