मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

गीत

बैरी पूरवा के झोंके से उड़ी है चुनरिया
हाय दईया खुल गई लाज की गठरिया
अनजानी राह दूर घर है बखरिया 
हा दईया घूरती हैं जालिम नजरिया

सोलहवें साल की बाली उमरिया
जाम जैसे छलके है तन की गगरिया
मनचले छोरे छेड़ें चलती डगरिया 
हा दईया घूरती हैं जालिम नजरिया,

छम-छम निगोड़ी बाजे पांव की पयलिया
बलखाती चाल मोरी झनके झांझरिया
चाँद जैसा मुखड़ा उसपे रूप की बजरिया
हा दईया घूरती हैं जालिम नजरिया,

नादानी में सजके निकली शहरिया
हल्ला-हल्ला शोर हुआ गिरती बिजुरिया
कुड़ी गांव की मैं अल्हड़ अजूबा नगरिया
हा दईया घूरती हैं जालिम नजरिया,

लागे शरम कैसे जाऊं ओसरिया
मेला लगाये लोग बइठे दुवरिया
आग जैसे फैल गई छोटी सी खबरिया
हा दईया घूरती हैं जालिम नजरिया ।


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