शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

शिव भजन

भगवान तुम्हारे चरणों में
हम शीश झुकाने आये हैं
दर्शन की प्यासी आँखों को  
तेरा दरश कराने लाये हैं
भगवान तुम्हारे  ........।

इक बार पलट के तो देख इधर
दोनों कर जोड़े खड़ी शिव तेरे दर
अपने जीवन की करुण कथा
प्रभु मन की व्यथा सुनाने आये है
भगवान तुम्हारे  ........।

क्या तुझे तेरा करूँ अर्पण
सब कुछ तेरा प्रभु कण-कण
सच्ची श्रद्धा शुचि भावों की थाली
पग दो नयन पखारने लाये हैं
भगवान तुम्हारे  ........।

दुःख दर्द सारे हर लो मेरा
अपनी कृपा भरो झोली मेरा
पीर,वेदना की घृत बाती
करुणा का दीप जलाने आये हैं
भगवान तुम्हारे  ........।

मनचाहा कुछ दिया नहीं
ओ भाग्य विधाता गिला यही
दीन,दशा,संताप का नैवेद्य
टूटे सपनों का पुष्प चढा़ने लाये हैं
भगवान तुम्हारे  ......। 
                                           

                            शैल सिंह

सोमवार, 5 सितंबर 2016

कृष्ण भजन '' छाई बरसाने में धूम ''

                               '' कृष्ण भजन '' 

छाई  बरसाने  में धूम आये  गोकुल  से घनश्याम  
गोकुल नगरी  सूनी कर गए  सूना नगर  बृजग्राम
छाई बरसाने में धूम आये गोकुल  .....।

प्रेम का जोग लगा गिरिधर रोम-रोम में गए समां
झूठे बंधन झूठी माया के मोहजाल में लिए फँसा
मन बस में करके छैलछबीला बना लिया गुलाम
छाई बरसाने में धूम आये गोकुल  .....। 

झान्झर बजे ना राधे की गोपी गली कुञ्ज ना हरषें  
कैसी लगन लगाई ईक झलक को अँखियाँ तरसें
माँ यशुमति का हाल न पूछो दुःखी नन्द बलराम
छाई बरसाने में धूम आये गोकुल  ....।  

अबीर ,गुलाल  लगा अंग  संग खेलें  राधा के रंग
बजा के मुरली माधुरी  करें गोपियन संग हुड़दंग
बलि-बलि जाएँ ग्वाल-ग्वालिनें लीला देखि ललाम
छाई  बरसाने में धूम आये गोकुल…।

वृषभानु कुमारी वंशी बसी मन राधा बसे हैं श्याम
क्षण में रूप धरें बहुतेरे क्षण में नजर से अंतर्ध्यान
करो न हमें परेशान कन्हैया हो गयी अब तो शाम
छाई बरसाने में धूम आये गोकुल  …।

                                                  शैल सिंह 

शनिवार, 27 अगस्त 2016

डर लगता है

       '' डर लगता है ''


मैया इस देश न आऊँगी                      
रेप ,गैंगरेप सुन डर लगता है
देख भयावह दुनिया की
तस्वीर से बेहतर लगता है
कि कोंख में ही मर जाऊँ
घर के लोग से भी डर लगता है ,

यौवन की दहलीज चढ़ूँ या
मेरा धूल में बचपन खेले
चाहे शैशव लोटे खटोले पर
या उम्र के किसी पड़ाव के मेले
कब हैवानों की बलि चढ़ जाऊँ
मर्दों की बदनीयत से डर लगता है ,

क्या तुझे पता है ये भी माँ ,कि
माँ ,बहन ,बेटी ,बहू की कड़ी हूँ मैं
फिर भी रिश्तों की बुरी नियत पे
कब-कब किसकी ग्रास चढ़ी हूँ मैं
अस्मत के हजारों चिथड़े पर भी
मौन रहना इज्जत का डर लगता है ,

कब ,कहाँ , पग-पग, पल-पल
तुम मेरे कष्टों का संहार करोगी
कैसे कुत्तों द्वारा मेरा जिस्म नोंचना
पालनहारन नैनों के सम्मुख देखोगी
तेरी बेटी ही दहेज़ की बलि चढ़ेगी
घुट-घुट जीने मरने से डर लगता है ,

देख सफेदपोशों का छुपा मुख़ौटा
काँपे बूटा-बूटा पत्ता-पत्ता थर-थर
जाने कब आ जाये आंधी का झोंका
और गिरूँ चटाख शाख़ से लड़कर
ऐसे कमजोर शाख़ की बदहाली पर
समाज के क्रूर चाल से डर लगता है,

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का ,
नारा बुलन्द हुआ क्या इसीलिए है
हाट भोग विलास का उपहार सजा
ऐ वासना के शिकारियों तेरे लिए है
मैया भूले से भी इस देश न लाना
नरभक्षी भूखे भेडियों से डर लगता है ।

                                  शैल सिंह