स्व रचित कविता
'देश गान'
आन,बान,अस्मिता के लिए लड़े लड़ाईयां,
नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ,
जय भारती जय वीरभूमि जय
जय भारती जय वीरभूमि जय ।
ललकारी थीं माँएं बहने अपनी आँख के तारों को,
सौंपीं स्वर्नाभूषण,चाँदी,मंगलसूत्र गले के हारों को,
स्वाभिमान के समर में ढहा कटुता की दीवारों को,
कर में तिलक लगा पकड़ायीं दुधारी तलवारों को.
मातृभूमि के लिए हवन कीं हर कौम ने जवानियाँ
नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ,
जय भारती जय वीरभूमि जय
जय भारती जय वीरभूमि जय ।
पराक्रमी मराठे जूझे थे मुगलों के अत्याचारों से,
वतन परस्ती का जज़्बा भर मतवाली हूँकारों से,
सत्ता छीनकर किया हुकूमत गोरी शुरमेदारों से,
चूलें हिला दीं थीं शूरवीरों ने इंकलाब के नारों से,
शेर शिवाजी राणा प्रताप ने दीं अपनी कुर्बानियाँ
नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ,
जय भारती जय वीरभूमि जय
जय भारती जय वीरभूमि जय ।
की थी अंग्रेजों ने मनमानी जलियाँ वाले बाग़ में,
हल्दी घाटी में राजपुताना आयुद्ध था उन्माद में,
कूदीं हजारों पद्द्मिनियाँ जौहर होने को आग में,
कई मिसालें गौरव की हैं इस माटी की नाभि में,
वफ़ादार चेतक की रण में चौकड़ी कलाबाजियाँ
नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ,
जय भारती जय वीरभूमि जय
जय भारती जय वीरभूमि जय ।
सिर पे बांध तिरंगा सेहरा जाँबाज़ी दिखलाई थी,
सीने पर जाने कितनी गोली परवानों ने खाईं थीं,
देख दीवानगी वीरों की उर्वी की छाती थर्राई थी,
नयन के तारों की आहुति पे ये आज़ादी पाई थी,
खेल रक़्त की होली तोड़ीं परतन्त्रता की बेड़ियाँ
नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ,
जय भारती जय वीरभूमि जय
जय भारती जय वीरभूमि जय ।
लहर-लहर लहराये पताका शान से स्वाभिमान की,
स्वाधीनता का महाप्रसाद ये सूरमों के बलिदान की,
ऋण तभी चुका पायेगा भारत होंठों के मुस्कान की
सीने से लगा कर रखना थाती पुरखों के सम्मान की,
चैन की बंशी बजाकर सोती आज़ादी चादर तानियाँ
नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ,
जय भारती जय वीरभूमि जय
जय भारती जय वीरभूमि जय ।
उर्वी---धरती
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह