रविवार, 24 अक्तूबर 2021

'' भजन '' श्याम कैसी तड़प की सजा दे गया ,

            '' भजन ''

प्रीत की जोत दिल में जला के
चैन चितचोर कान्हा उड़ा ले गया
मधुर मुरली की धुन पे नचा के
राधा रानी को छल के दगा दे गया ,

कब आयेंगे मोहन बता के तो जाते
याद में राह तकते न हम तड़फड़ाते
जाने कैसी व्याधि तन-मन लगा के
श्याम कैसी तड़प की सजा दे गया ,

रस भरी चितवन से मोहा मुरारी
फँस गईं अँखियाँ निगोड़ी बिचारी
विरही  बावरी  चितेरा  बना  के
हाय कलेजे पे बरछी चला के गया ,

मौन जमुना की लहरें तुम्हारे बिना
नम नयन गोपी ग्वाले तुम्हारे बिना
क्यों तर-बतर रास रंग में डूबा के
लीलाहारी तूं लीला दिखा के गया ,

कदम छईंया हैं बैठीं गैयाँ उदासी
बाट तेरा निहारें अंखियाँ ये प्यासी
नख से शिख नाम अपना लिखा के
विछोह के पीर से क्यों सता के गया ,

जाके कहना संदेशा ऊधो जिया की
सुध गए भूल क्यों याद आती पिया की
सांवरा  सूरतिया  हिया   में  बसा  के
श्याम मनिहारी ठग बन रिझा के गया ।

                                   शैल सिंह






शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

मत पेट पे लात चला देना


मेघ बरसना चाहे जितना तुम मेरी मड़ई का ध्यान रहे
पछुवा बहना चाहे रे जितना मेरी ढिबरी का ध्यान रहे,

हम अपना नीड़  बचाने में दिन  रात ढिहनाते रहते हैं
कड़के कभी जो दामिनी प्राण पात पर अटके रहते हैं,

किसी-किसी के जीवन में  सुख ही सुख भर देते मेघ
और किसी के कोढ़ में खाज आफ़त सी भर देते मेघ,

कभी बरसाते ओला खूब तो कभी तपाते तुम निर्मम
कभी सूर्य के रथ सवार हो आग उगल कर देते बेदम,

उपले,गोंइठा,लौना-लकड़ी कहीं मत ग्रास बना लेना
दोनों जून जले घर चूल्हा मत पेट पे लात चला देना,

राजे-रजवाड़ों के घर जाकर महल अटारी पर बरसो
हो तुम उनके लिए सुहावना मौसम दरबारी कर हर्षो,

खलिहान,खेत तो बहा ले गये लटका है सूली पे प्राण
आपदा गरीबों को देकर कुछ तो रखो व्यथा का मान ,

फसल हमारे सपने थे वही जीवन के ख़जानों के सार
सब चौपट कर दे रहे विषाद नहीं करो और अत्याचार,

कहीं सूखे से लोग बेहाल कहीं बरसते तुम मूसलाधार
कितने मन के मनबढ़ हो कहर बरपाते तुम अपरम्पार ।

                                                  शैल सिंह