रविवार, 22 दिसंबर 2019

भोजपुरी में मेरी एक रचना एक सैनिक की पत्नी का करुण विलाप

भोजपुरी में मेरी एक रचना

एक सैनिक की पत्नी का करुण विलाप

सुनसान लागे भवनवाँ
झनके अँगनवाँ
निसदिन विछोह में
ढरके नयनवां
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां,

गहि-गहि मारेलीं
सासु रानी तनवाँ
सहलो ना जाये हाय
छोटी ननदो के मेहनवां
लहुरा देवरवा रगरी
हवे बड़ा शैतनवां
हुक़्क़ा नियर बड़बड़ालें  
ससुरु बइठि दुवरवा
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां,

विरही कोइलिया करे
राग धरि बयनवां
पापी पपीहरा के
सुनि पिहकनवां
ड्योढ़ी अस पिंजरा में
बंद जईसे हईं सुगनवाँ
भीतर-भीतर तड़फड़ाला
हिया के मयनवां
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां,

भावे ना सिंगार तन
विरावेला गहनवां
देहिया जरावे चन्दा
उतरि के अँगनवाँ
सिमवा पर जिया देई-देई
तजि देबा परनवां
आ चैनवां क नींद सूतिहें
सगरो जहनवां
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां

नईहरे ना मई-बाप
ना एकहु विरनवां
गांव गोईड़ार छूटल
तोहरे करनवां
सखियां सहेलियाँ भी
गईलीं गवनवाँ
गोदिया में खेलें उनके
सुघर सलोना ललनवां
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां।


सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह 

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

" महके तेरे गंध सी मह-मह पुरवाई "

रूत सावन है अलमस्त सुहावन
भरे उमंग,तरंग लगे उर वृन्दावन
रैना अंधेरी जले जुग-जुग जुगनूं 
भरे प्रकृति में है ख़ुश्बू मनभावन ।

नभ छाई घटा घनघोर बलमु जी
तड़क-तड़क  तड़ गरजे  बिजुरी
मग आँखें  बिछा  तकूं  राह  तेरी
घर आओ पिया,संग खेलूं कजरी ।

अस बरसे अंखिया भींजे अंगिया
ले मदमस्त सवनवां जब अंगड़ाई
उठे सरर-सरर-सर्र मन में हिलोरा
महके तेरे गंध सी मह-मह पुरवाई ।

ओढ़ हरी चूनर लहकें वन-उपवन
पी संग चंचल शोख़ हुईं सखियां
बूंदों की छम-छम से गूंजे सरगम
टह-टह सहन में छिटकी चंदनियां ।

तुम बिना प्रीत भरा अंजन,कजरा
कौन देखे कंगन,केश सजा गजरा
बजे छन-छन पांव पाजेब निगोड़ी
लगे बिरथ सिंगार रची द्वार रंगोली ।

टिसही छिनाल बदरिया सावन की
तन सुलगाती विराग में साजन की
बरसे रिम-झिम कारा बावरा बदरा
समेटती फुहरा,मुदित पसरा अंचरा ।

क्यों स्मृति के सिरहाने देते दस्तक
सुधि में तपती देख आ छूके मस्तक
लगे जीवन पहाड़ रैना दिवा सरीखी
मारे डंक सेज लगे घर सूना अबतक ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
                     शैल सिंह